Thursday, April 27, 2017

मोहब्बत हो गयी हैं



ऐसा लगता तुमसे मिले एक अरसा हो गया
आज के ही दिन तो तुमसे मुलाकात हुई थी 
कितनी अकेली चुपचाप खड़ी तुम मुझे देख रही थी 
उम्मीदों की रोशिनी से मेरे अँधेरे मन को भर रही थी 

वैसे खाली तो आज भी है मेरे मन का वो कोना 
यहाँ कभी तुम मोहब्बत के साथ रहती थी 
आज उस कोने में दर्द की मोटी परत ज़मीं हैं 
जो कभी तुम्हारे आने की आहट से थोड़ी छड़ जाती हैं 

जिंदगी आज भी वैसी ही चल रही है 
जो कभी तुम्हारे जिंदगी में आने से पहले चला करती थी 
तुम्हारे साथ के पल जिंदगी ने अपने सुकून के लिए संभाल रखे हैं 
कभी खुद से परेशान होती है तो इन पलों की गोद में आराम करती हैं 

अब रातों को जागने की वजह नहीं होती 
फिर भी आँखें बंद नहीं होना चाहती 
तुम्हारे बिना कोई ख्वाब नहीं देखना चाहती 
तुम्हारे बिना चाँद को नहीं तकना चाहती 

कभी कहा नहीं तुमसे जब तक तुम साथ थी 
न जाने क्यों अब कहना चाहता हूँ 
कोरा हुआ करता था वो पन्ना जिंदगी का कभी 
जिसे तुम्हारे लिए आज शब्दों में रंगना चाहता हूँ 

दुनिया की नज़र में इसे इज़हार ए मोहब्बत कहते हैं 
जिसे में तेरे लिए ता उम्र कबूल करना चाहता हूँ 
तू भी करे मुझसे बेपनहा मोहब्बत कभी 
बस यही दुआ उस मोहब्बत के खुदा से करना चाहता हूँ 

तुझसे इस जुदाई को भी मोहब्बत का इम्तहान माना है 
कभी वापस मिले तो खुद को खुशनसीब समझूँगा 
ना करुँ उम्मीद इस मोहब्बत की राह में तुझसे 
अब खुद पर खुदा का इतना कर्म माँगा हैं 

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