ऐसा लगता तुमसे मिले एक अरसा हो गया
आज के ही दिन तो तुमसे मुलाकात हुई थी
कितनी अकेली चुपचाप खड़ी तुम मुझे देख रही थी
उम्मीदों की रोशिनी से मेरे अँधेरे मन को भर रही थी
वैसे खाली तो आज भी है मेरे मन का वो कोना
यहाँ कभी तुम मोहब्बत के साथ रहती थी
आज उस कोने में दर्द की मोटी परत ज़मीं हैं
जो कभी तुम्हारे आने की आहट से थोड़ी छड़ जाती हैं
जिंदगी आज भी वैसी ही चल रही है
जो कभी तुम्हारे जिंदगी में आने से पहले चला करती थी
तुम्हारे साथ के पल जिंदगी ने अपने सुकून के लिए संभाल रखे हैं
कभी खुद से परेशान होती है तो इन पलों की गोद में आराम करती हैं
अब रातों को जागने की वजह नहीं होती
फिर भी आँखें बंद नहीं होना चाहती
तुम्हारे बिना कोई ख्वाब नहीं देखना चाहती
तुम्हारे बिना चाँद को नहीं तकना चाहती
कभी कहा नहीं तुमसे जब तक तुम साथ थी
न जाने क्यों अब कहना चाहता हूँ
कोरा हुआ करता था वो पन्ना जिंदगी का कभी
जिसे तुम्हारे लिए आज शब्दों में रंगना चाहता हूँ
दुनिया की नज़र में इसे इज़हार ए मोहब्बत कहते हैं
जिसे में तेरे लिए ता उम्र कबूल करना चाहता हूँ
तू भी करे मुझसे बेपनहा मोहब्बत कभी
बस यही दुआ उस मोहब्बत के खुदा से करना चाहता हूँ
तुझसे इस जुदाई को भी मोहब्बत का इम्तहान माना है
कभी वापस मिले तो खुद को खुशनसीब समझूँगा
ना करुँ उम्मीद इस मोहब्बत की राह में तुझसे
अब खुद पर खुदा का इतना कर्म माँगा हैं